वीर नि. सं. २४२४ , सन् १९९८ में भगवान ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार के अवसर पर यह पुस्तक लिखी गयी | इसमें तीर्थंकर ऋषभदेव के बारे में वर्णन है , जो करोडों वर्ष पूर्व के इतिहास का स्मरण कराता है | जैनधर्म के कर्मसिद्धांत सृष्टिरचना , तीर्थंकरों के पञ्चकल्याणक , जैन धर्म की उदारता आदि का भी संक्षिप्त वर्णन है तथा भगवान ऋषभदेव के पुत्र सम्राट चक्रवर्ती भरत के नाम पर हमारे देश का ” भारत ” नाम विभिन्न वेद पुराणों के माध्यम से सिद्ध किया है | इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद आर्यिका चंदनामती माताजी ने किया है | जिसका प्रथम संस्करण वीर नि. सं. २५२५ , ४ फरवरी २००० में छप चुका है |