तात्पर्यार्थ में शान्तरस एवं मार्गदर्शन जिनागम के स्वाध्याय का लक्ष्य वस्तुतत्वविचार, वैराग्य एवं आत्मविशुद्धि है। वह भावविशुद्धि पर आधारित है। जब मन शान्त हो जाता है तब आत्मानुभव रूप शान्तरस का आस्वाद प्राप्त होता है, कहा भी है- वस्तु विचारत ध्यावतैं मन पावै विश्राम। रस स्वादत सुख ऊपजै अनुभव याको नाम।। इसी आत्मानुभव रूप अमृत…
गुणस्थानसार वेद मार्गणासार प्रश्न—वेद किसे कहते हैं ? उत्तर—पुरुषादि के उस रूप परिणाम को या शरीर चिन्ह को वेद कहते हैं। वेदों के दो भेद हैं—भाववेद, द्रव्यवेद। मोहनीय कर्म के अंतर्गत वेद नामक नोकषाय के उदय से जीवों के भाववेद होता है और निर्माण नामकर्म सहित आंगोपांग नामकर्म के उदय से द्रव्यवेद होता है अर्थात्…
उपासक धर्म आद्य जिन श्री ऋषभदेव भगवान् तथा राजा श्रेयांस ये दोनों क्रम से व्रतविधि और दानविधि के आदि प्रवर्तक पुरुष हैं। अणुव्रत और महाव्रत आदि व्रतविधि का प्रचारक इस युग के आदि में सर्वप्रथम भगवान् ऋषभदेव ने किया है। और दानविधि का प्रचार भगवान को आहार दान देकर राजा श्रेयांस ने किया है। इसलिये…