वीर नि. सं. २५०१ , सन् १९७५ में यह उपन्यास माताजी ने लिखा | इसमें भगवान पार्श्वनाथ का मरुभूति की पर्याय से लेकर पार्श्वनाथ तक १० भवों का कथानक के रूप में वर्णन है जिसे पढकर वैर न करने एवं बदले की भावना से दूर रहने की शिक्षा मिलती है |