नम्रता :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == नम्रता : == किंदि रिंता वि नमंति मग्गणत्थं धरंति जे जोयं। ताण धणूण व पुरिसाण कह णु मा होउ टंकारो।। —गाहारयण कोष : १२९ करोड़ों का धन देकर भी जो नम्र है और जो याचकों के लिए ही जीवन धारण करता है, ऐसा धनुष और पुरुष क्यों नहीं…