प्रकृति अघाती!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति अघाती – Prakrti Aghati. A type of karmic nature. कर्म प्रक्रति का एक भेद; जो प्रतिजिवी गुणों का घात करती हैं वह अघाती कर्म प्रक्रतियां कहलाती हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति अघाती – Prakrti Aghati. A type of karmic nature. कर्म प्रक्रति का एक भेद; जो प्रतिजिवी गुणों का घात करती हैं वह अघाती कर्म प्रक्रतियां कहलाती हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पूर्व पक्ष – Poorva Paksha. Prime facie view. वाद-विवाद के दौरान वादि के द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रथम पक्ष “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति (ध्रुव – अध्रुव ) – Prakrti (Dhruva –Adhruva). Karmic nature with continuous & non-continu-ous binding. ध्रुव – अध्रुव प्रकृति; बंध व्युच्छित्ति पर्यत जिनका बंध होता रहे वह ध्रुव बंधी तथा जिनका बंध होकर रुक जाता है वह अध्रुव बंधी प्रकृतियां हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पूर्वधर – Poorvadhara. Saints possessing knowledge of Purvas (Parts of scriptual knowledge – shrutgyan). 14 पूएव के ज्ञाता मुनि ” वृषदेव समवसरण में 4750 पूर्वधर मुनि थे “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकुर्वी – Prakurvi. Great Acharya having great patience in serving Kshapaks (saints at the stage of mortification I.e. Samadhi). क्षपक की सर्व प्रकार शुश्रूषा करते हुए अधिक परिश्रम पड़ने पर भी जो आचार्य खिन्न नहीं होते हैं, ऐसे आचार्य “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पूर्वदिशा – Poorvadishaa. East-direction (for conducting relegious observances etc. all auspicious deeds). एक शुभ दिशा, सूर्योदय वाली दिशा, पूएव दिशा में मुख करके कृतिकर्म सामायिक आदि करना चाहिए “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकुब्जा – Prakubja. Name of the chief Aryika in the assembly of Lord Ajitanath. अजितनाथ भगवान के समवसरण की प्रधान आर्यिका अर्थात् गणिनी का नाम “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पूर्व तालका – Poorva taalakaa. Place of getting omniscience by Lord Rishbhdev. See – Purimtaala. ऋषभदेव भगवान के केवलस्थान का नाम ” देखें – पुरिमताल “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकीर्णक देव – Prakirnaka Deva. A type of deites (as common citizens). देवों के दश भेदों में से एक; जो देव प्रजा के समान होते हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकीर्णक तारे – Prakirnaka Tare. Scattered stars. ज्योतिषी देवों का एक भेद, ये आकाश में बिखरे हुए रहते हैं और यह चर और अचर के भेद से दो प्रकार के होते हैं “