पंजिका!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंजिका – Panjikaa. A descriptive book of odd items. वृत्तिसूत्रों के विषम पदों को स्पष्ट करने वाले विवरण को पंजिका कहते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंजिका – Panjikaa. A descriptive book of odd items. वृत्तिसूत्रों के विषम पदों को स्पष्ट करने वाले विवरण को पंजिका कहते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचेन्द्रिय तिर्यच – Panchendriyatiryacha. Five sensed Tiryach beings (animals etc.). पांच इन्द्रियों वाले तिर्यच इनके जलचर, नभचर, थलचर, के भेद से तीन भेद है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचेन्द्रियत्व – Panchendriyatva. To be five-sensed. पांच इन्द्रियों का होना” सयोगी अयोगी केवली को देव्येन्द्रिय की अपेक्षा पंचेन्द्रियत्वहोता है भावेन्द्रियकी अपेक्षा नहीं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म – Panchendriya Jaati Naama karma. A karmic nature causing five sensed beings. जिस नाम कर्म के उदय जीव पंचेन्द्रिय होता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचेन्द्रिय जीव – Panchendriya Jeeva. Five sensed Tiryanch beings (animals etc.). मनुष्यादि जीव जिनके स्पर्शन रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रियां पाई जाती है” इनके दो भेद है- मनसहित-संज्ञी, मनरहित- असंज्ञी “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचास्तिकाय – Panchaastikaaya. A great treatise written by Acharya Kund-kund. आचार्य कुन्द-कुन्द (ई.127-179) द्वारा रचित ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचाश्चर्य – Panchashchry Five spiritual & super wonder. देवकृत रत्नवर्षा, पुष्पवर्षा, गंधोदकवृष्टि, शीतल मंद सुगंधित वायु प्रवाह, दुंदुभि बाजे और अहोदनं अहोदनं की ध्वनी ” यह पंचाश्चर्य वृष्टि तीर्थकर भगवंत एवं विशेष महामुनियों के आहार में देवों द्वारा की जाती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचाध्यायी – Panchaadhyaayee. A book written by Pandit Rajmal ji. पं. राजमलजी (ई. 1593) कृत एक संस्कृत ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचातिचार – Panchaatichaar. Five-five infractions of different vows of householders (togetherly these are 70 in numbers). सम्यक्त्व, व्रत, शील, तथा सल्लेखनाकी विधि के पांच- पांच अतिचार” सम्यक्त्व के 5, 5 अणुव्रतों के 5-5, 7 शीलों (3 गुणव्रत+4 शिक्षाव्रत) के 5-5 तथा सल्लेखना के 5 इस प्रकार ये श्रावक के 70 अतिचार होते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचाचार – Panchaachaara. Five kinds of special right conducts observed by Jaina Acharya. सम्यग्दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार, और वीर्याचार ये पंचाचार कहे जाते हैं” जैन आचार्य इनका प्रमुखतासे पालन करते हैं “