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इ The third vowel of the Devanagari syllabary. देवनागरी वर्णमाला का तृतीय स्वर।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
इ The third vowel of the Devanagari syllabary. देवनागरी वर्णमाला का तृतीय स्वर।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चरणानुयोग गृहमेध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षाङ्गम्। चरणानुयोगसमयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति।।४५।। अर्थ-सम्यग्ज्ञान ही गृहस्थ और मुनियों के चरित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा के अंगभूत चरणानुयोग शास्त्र को जानता है अर्थात् जिसमें श्रावक और मुनिधर्म का वर्णन किया जाता है, वह चरणानुयोग है। अथवा An Anuyog (a division of particular treatises) dealing with principles of conduct prescribed for the householders…
झूठ- मर्मच्छेदी पुरूषवचन, उद्वेगकारी कटुवचन, वैरोत्पादक, भयोत्पादक, तथा अवज्ञाकारी वचन इस प्रकार के वचन अप्रिय हैं तथा हास्य भीति लोभ क्रोध द्वेष इत्यादि कारणों से बोले जाने वाले वचन सब झेठ (असत्य) हैं।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
सत्य- अच्छे पुरुषों के साथ साधु वचन बोलना सत्य है। धर्म की वृद्धि के लिए धर्म सहित बोलना वह सत्य कहाता है । इस धर्म के व्यवहार की आवश्यकता ज्ञान चारित्र के सिखाने आदि में लगती है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
जिनसेन- आप आ0 भीमसेन के शिष्य तथा शांति सेन के गुरु थे समय ई.श. 7 अन्न । पुन्नाह संघ की मुर्वावली के अनुसार आप श्री कीर्तिषेण के शिष्य थे। कृति- हरिवंश पुराण वीरसेन स्वामी के शिष्य बागर्भ दिगम्बर। कृतिये-अपने गुरु की 20000 श्लोक प्रमाण अधुरी जयधवला टीका को 40000 श्लोक प्रमाण अपनी टीका द्वारा पूरा…
हुण्डावसर्पिणी काल- असंख्यात अवसर्विणी- उत्सर्पिणी काल की शलाकाओं के बीत जाने पर प्रसिद्ध एक हुण्डावसर्पिणी आती है उसके चिन्ह है- विकलेन्द्रिय जीवो की उत्पत्ति अधिक होती है। इस काल में कल्प वृक्षों का अन्त और कर्मभूमि का व्यापार प्रारम्भ हो जाता है चक्रवर्ती की विनयभंग 58 ही श्लाका पुरुष उत्पन्न होते है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
भद्रबाह- ये पाँचवे श्रुतकेवली थे। 12 वर्ष के दुर्भिक्ष के कारण इनको उज्जैनी छोड़कर दक्षिण की ओर प्रस्थान करना पड़ा था। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य भी उस समय उनसे दीक्षा लेकर साथ ही दक्षिण देश को चले गये थे। श्रवण बेलगोल में चन्द्रगिरी पर्वत पर दोनों की समाधि हुयी।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
तीर्थंकर- संसार से पार होने के कारण को तीर्थ कहते हैं। उसके समान होने से आगम को तीर्थ कहते है, उस आगम के कर्ता तीर्थंकर है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
इन्द्रभूति- पूर्व भव में आदित्य विमान में देव थे। यह गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। वेद पाठी थे। भगवान वीर के समवशरण में मानस्तम्भ देखकर मानभंग हो गया। व 500 शिष्यों के साथ दीक्षा धारण कर ली। तथा सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयी। भगवान महावीर के प्रथम गणधर थे। आपको नावण कृश्ण एकम् के पूर्वोह काज…
परिग्रह- लोभ कषाय के उदय से विषयों के संग को परिग्रह कहते हैं। ‘यह वस्तु मेरी है’ इस प्रकार संकल्प रखना परिग्रह है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]