आचारसार!
आचारसार A book written by ‘Acharya’ Veernandi . आचार्य वीरनंदि (वि.सं. 556)कृत मुनि आचरण ग्रंथ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
आचारसार A book written by ‘Acharya’ Veernandi . आचार्य वीरनंदि (वि.सं. 556)कृत मुनि आचरण ग्रंथ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
आचारवर्द्धन व्रत A type of vow. एक प्रकार का व्रत जिसमें सौ दिन उपवास एंव उन्नीस पारणा शामिल हैं।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
गौतमगणधर- जैनधर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर के प्रमुख गणधर । [[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावतीर्थ – Bhavatirtha. The soul with right perception, knowledge & conduct. तीर्थ का एक भेद; सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र युक्त आत्मा भाव तीर्थ है “
जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुति – प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती माताजी परिचय हिन्दी के प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त ने एक कविता में लिखा है- अंधकार है वहाँ जहाँ आदित्य नहीं है। निर्बल है वह देश जहाँ साहित्य नहीं है।। अर्थ- किसी भी देश का गौरव वहाँ के साहित्य भण्डार से आंका जाता है यह बात…
अरिहंत-जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया है, जिनमें छियालीस गुण होते हैं और अठारह दोष नहीं होते हैं, वे अरिहंत [[परमेष्ठी]] कहलाते हैं। अथवा The omniscient Lord. पंच परमेष्ठियों में प्रथम परमेष्ठी,जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया है। इनके अपरनाम-अरिहंत,अरुहंत,अरहंत हैं । [[श्रेणी:शब्दकोष]][[श्रेणी:पुत्र]]
श्री विद्यानन्द स्वामी दि0 जैन अतिशय क्षेत्र देरासर,कतारगांव, सूरत क्षेत्र परिचय- यह क्षेत्र उतर पश्चिम रेल्वे का प्रमुख स्टेशन है। यह अहमदाबाद बम्बई रेल्वे लाईन के बीच का स्टेशन है। यहाँ से सजोद तीर्थ 85 किमी0 की दूरी पर है व अंकलेश्वर तीर्थ 95 किमी0 पर है। यहाँ एक अच्छी डिलक्स धर्मशाला व एक त्यागी…
जैन दर्शन जैन दर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन है। यह विचारधारा लगभग छठी शताब्दी ई॰ पू॰ में भगवान महावीर के द्वारा पुनराव्रतित हुयी। इसमें वेद की प्रामाणिकता को कर्मकाण्ड की अधिकता और जड़ता के कारण अस्वीकार किया गया। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान देते हुये तीर्थंकर के उपदेश का दृढ़ता से पालन करने का विधान…
पावापुर राजगीर और बोधगया के समीप पावापुरी भारत के बिहार प्रान्त के नालंदा जिले मे स्थित एक शहर है। यह जैन धर्म के मतावलंबियो के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है क्यूंकि माना जाता है कि भगवान महावीर को यहीं [[मोक्ष]] की प्राप्ति हुई थी। यहाँ के जलमंदिर की शोभा देखते ही बनती है। संपूर्ण…
महावीर स्वामी के गणधर गणधर जैन दर्शन में प्रचलित एक उपाधि है। जो अनुत्तर, ज्ञान और दर्शन आदि धर्म के गण को धारण करता है वह गणधर कहा जाता है। इसको तीर्थंकर के शिष्यों के अर्थ में ही विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। गणधर को द्वादश अंगों में पारंगत होना आवश्यक है। प्रत्येक…