वीर नि. सं . २५०६, सन् १९८० में यह पुस्तक लिखी गयी है | यह भी उपन्यास है , जिसमें सेठ सुदर्शन , महामुनि सुकुमाल , रक्षाबंधन एवं अंजन चोर की कथाएँ हैं |
बालकों को जैनधर्म का प्रारंभिक ज्ञान अर्जित कराने के लक्ष्य से पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने सन् १९७४ में ‘ बाल विकास ‘ नाम से ४ भाग लिखे हैं | उनमें से प्रथम भाग में अनादिनिधन णमोकार महामंत्र से प्रारम्भ करके मन्त्र की महिमा , मन्त्र के अपमान का कुफल , चौबीस तीर्थंकरों के नाम और चिन्ह , देवदर्शन की विधि आदि के १४ पाठ इस बाल विकास में दिए गए हैं | यथास्थान सभी पाठों के चित्र होने से बच्चों को शीघ्रता से पाठ का अभिप्राय समझ में आ जाता है | इसका अंग्रेजी अनुवाद श्री जिनेन्द्रप्रसाद ‘ ठेकेदार ‘ – दिल्ली ने किया है , जो कि छप चुका है |