मेरी स्मृतियाँ पढ़ें
संघ के शिष्य – शिष्याओं तथा समाज के वरिष्ठ श्रेष्ठी , विद्वान एवं कार्यकर्ताओं के विशेष आग्रह पर पूज्य माताजी ने अपने दीर्घ जीवन की आत्मकथा लिखी है | यह एक श्रमसाध्य कार्य था , भूली बिसरी स्मृतियों को याद कर उन्हें लिपिबद्ध करना और वह भी पाठकों की दृष्टि से | इसे लिखते समय माताजी के मस्तिष्क पर बहुत जोर पड़ा | तब यह एक छोटी पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ , पुनः आगे की स्मृतियों सहित मोटा ग्रन्थ सन् १९९० में लिखा गया , उसके बाद सन् २००४ में १४ वर्षों की स्मृतियों को संक्षेप में दर्शाया गया है |
राजधानी दिल्ली में वीर नि. सं. २५०८ , सन् १९८२ में इसे लिखना प्रारंभ किया | हस्तिनापुर में वीर नि. सं . २५०९ , सन् १९८३ में लिखकर पूर्ण किया | इस ग्रन्थ में अपने बाल्यकाल से [ सन् १९४० ] तो सभी घटनाओं को दर्शाया ही है | साथ ही देश काल की परिस्थितियों पर भी द्रष्टिपात किया है | यह केवल आत्मकथा का ग्रन्थ ही नहीं है अपितु विगत६०- ६५ वर्षों का दिगंबर जैन समाज का इतिहास है | इन विगत वर्षों में हुई विशेष घटनाओं को भी अपने अनुभवों के आधार पर अंकित किया है | इस ग्रन्थ को पढकर न जाने कितने भव्य जीवों ने अपने कर्तव्यों एवं वैराग्य का पथ प्रशस्त किया है | एक बार प्रत्येक स्वाध्यायी को यह ग्रन्थ अवश्य ही पढ़ना चाहिए |