इस पुस्तक में पूज्य माताजी ने भगवान शांतिनाथ के पूर्व भवों का वर्णन प्रस्तुत किया है | साथ ही उनके जन्म से वैराग्य्य तक का इतिहास , शांतिनाथ हिन्दी पद्यानुवाद आदि पुस्तक में समाहित है |
जम्बूद्वीप – हस्तिनापुर तीर्थ पर वी. नि. सं. २५१७ . वैशाख कृष्णा द्वितीया सन् १९९१ में यह ग्रन्थ पूर्ण किया | मुनि – आर्यिकाओं की नित्य – नैमित्तिक क्रियाओं संबंधी अनेक ग्रंथों का प्रकाशन विभिन्न स्थानों से समय- समय पर हुआ है , किन्तु वे भक्तियाँ आदि संस्कृत – प्राकृत में हैं , जिनका अर्थ बहुत त्यागी वर्ग समझ पाते थे | इस कमी की पूर्ति पूज्य माताजी ने की | सभी भक्तियों का एवं दैनिक व पाक्षिक प्रतिक्रमण पाठों का हिन्दी में पद्यानुवाद कर दिया है, उसी का यह प्रकाशन है | अब इस पाठों को पढ़ने वाले प्रत्येक साधु को यह सहज रूप में समझ रूप में समझ में आ जावेगा कि वे क्या पढ़ रहे हैं | दिगंबर मुनि आर्यिकाओं के लिए यह ग्रन्थ विशेष रूप से उपयोगी है | इसके द्वितीय और तृतीय संस्करण भी सन् २००९ में प्रकाशित हो चुके हैं |
महारानी रोहिणी जो कि हस्तिनापुर के महाराजा अशोक की पत्नी थी , जिसके पुण्य का इतना प्रबल उदय था कि उसे यह भी मालूम नहीं था कि रोना किसे कहते हैं ? उसने ऐसे महान पुण्य का बंध रोहिणी व्रत करके किया था , उस व्रत की महिमा इस नाटक में दिखाई गयी है | वीर नि. सं. २५०२ , सन् १९७६ में यह नाटक लिखा गया है |
इसके दो भागों की श्रंखला को आगे बढाते हुए बाल विकास का तीसरा भाग प्रकाशित किया गया | इस ६४ पृष्ठीय बालविकास भाग तीन में छः द्रव्य , सात तत्व ,नौ पदार्थ , सम्यग्दर्शन , मिथ्यादर्शन , सप्त व्यसन , कर्मास्रव के कारण आदि १९ पाठ हैं | इसे पढकर जैनधर्म के अच्छे ज्ञाता बन सकते हैं |
भगवान ऋषभदेव के परम पावन जीवनवृत्त को प्रदर्शित करने वाले इस नाटक का प्रकाशन हस्तिनापुर में संपन्न हुए , जम्बूद्वीप रचना के पंचकल्याणक महोत्सव के शुभ अवसर पर किया गया |