बाल विकास (भाग-४) पढ़ें
ज्ञानार्जन की श्रेणी को आगे बढाते हुए इस चौथे भाग का प्रकाशन किया गया | इस बाल विकास भाग – ४ में पूज्य माताजी ने पञ्च परमेष्ठी के मूलगुणों से लेकर श्रावक के पाँच अणुव्रत , १२ व्रत , ११ प्रतिमा , ध्यान , गुणस्थान आदि का वर्णन गोम्मटसार के आधार से दिया है |
इन चारों भागों को पढकर कोई भी विद्यार्थी / पाठक जैनधर्म के अच्छे ज्ञाता बन सकते हैं | बाल विकास के चारों भाग कन्नड़ , मराठी , गुजराती , तमिल भाषा भी छप चुके हैं जो कि वर्तमान में अनुपलब्ध हैं |