वीर निर्वाण सं. २५०३ , सन् १९७७ में यह उपन्यास लिखा गया | पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखे गए इस उपन्यास में जीवंधर कुमार के जीवन का बहुत रोमांचक वर्णन है | उनके जीवन के उतार – चढाव को दर्शाने वाला यह उपन्यास सुकृत की महिमा को प्रकट करता है |
पाँच मिथ्यात्व आदि से आस्रव के ५७ भेद हैं | इन्हें चौदह गुणस्थानों और मार्गणाओं में घटाया है और चार्ट भी दिए गए हैं | यह भी श्रुतमुनि की रचना है | माताजी ने सन् १९७३ में इसका अनुवाद किया है |