संल्लेखना :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संल्लेखना : == संलेखना च द्विविधा, अभ्यन्तरिका च बाह्या चैव। अभ्यन्तरिका कषाये, बाह्या भवति च शरीरे।। —समणसुत्त : ५७४ संल्लेखना दो प्रकार की है—आभ्यन्तर और बाह्य। कषायों को कृश करना आभ्यन्तर संल्लेखना है और शरीर को कृश करना बाह्य संल्लेखना है। कषायान् प्रतनून् कृत्वा, अल्पाहार: तितिक्षते। अथ भिक्षुग्र्लायेत्…