अपुत्रीन को तू भले पुत्र दीने!
अपुत्रीन को तू भले पुत्र दीने (काव्य सत्ताइस से सम्बन्धित कथा) बिना फल का वृक्ष स्वयं को सन्तति विहीन समझकर मुरझा जाता है।कुमुदिनी रहित सरोवर उत्तुंग लहरों के स्थान पर मंद प्रवाह से बहता है।वही हाल राजा हरिशचन्द्र और उनकी धर्मपत्नी चन्द्रमती का था सन्तान का अभाव उन्हें चौबीसों घंटे संतप्त किये रहता था। कई…