58. पुण्य की महिमा का वर्णन
पुण्य की महिमा का वर्णन चक्रायुधोऽयमरिचक्रभयंकरश्रीराक्रम्य सिन्धुमतिभीषणनक्रचक्रम्। चव्रे वशे सुरमवश्यमनन्यवश्यं पुण्यात् परं न हि वशीकरणं जगत्याम्।।२१६।। शत्रुओं के समूह के लिए जिनकी सम्पत्ति बहुत ही भयंकर है ऐसे चक्रवर्ती भरत ने अत्यन्त भयंकर मगरमच्छों के समूह से भरे हुए समुद्र का उल्लंघन कर अन्य किसी के वश न होने योग्य मागध देव को निश्चितरूप से…