कारण!
.कारण दोष : जो कारण के निमित्त से होता है वह कारण दोष है। विरुद्ध कारणों से बना आहार लेना।
.कारण दोष : जो कारण के निमित्त से होता है वह कारण दोष है। विरुद्ध कारणों से बना आहार लेना।
उद्गम दोष- : दाता में होने वाले जिन अभिप्रायों से आहार आदि उत्पन्न होता है वह उद्गम दोष है।
दर्शनमार्गणा (चौदहवाँ अधिकार) दर्शन का स्वरूप जं सामण्णं गहणं, भावाणं णेव कट्टुमायारं। अविसेसदूण अट्ठे, दंसणमिदि भण्णदे समये।।१२८।। यत् सामान्यं ग्रहणं भावनां नैव कृत्वाकारम्। अविशेष्यार्थान् दर्शनमिति भण्यते समये।।१२८।। अर्थ—सामान्य—विशेषात्मक पदार्थ के विशेष अंश को ग्रहण न करके केवल सामान्य अंश का जो निर्विकल्परूप से ग्रहण होता है उसको परमागम में दर्शन कहते हैं। भावार्थ —यद्यपि वस्तु…
सिंघाड़ा – व्रत में सिंघाड़ा और इसके आटे के अनेक व्यंजन बनाये जाते है.– ये मखाने की तरह जल में पैदा होने वाले तिकोनाकार फल है. इसे कच्चा ही खाया जा सकता है या उबाल के या सुखा कर आटा बनाया जाता है. इसका अचार भी बनाते है.– एड़ियां फटने की समस्या शरीर में मैगनीज…
कनकश्री का वैराग्य जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमित सागर की वसुंधरा रानी से ‘अपराजित’ नामक पुत्र एवं अनुमति रानी से अनन्तवीर्य पुत्र ऐसे बलदेव और नारायणपदवी धारक दो पुत्र उत्पन्न हुये। यौवन अवस्था में राजा ने इन दोनों का राज्याभिषेक करके आप दीक्षा ले ली। इनके…
श्री ऋषभदेव के चौरासी गणधर के नाम सेनान्तो वृषभः कुम्भो रथान्तो दृढसंज्ञक। धनुरन्तः शतो देवशर्मा भवान्तदेवभाक्।।५४।। नन्दनः सोमदत्ताह्वः सूरदत्तो गुणैर्गुरुः। वायुशर्मा यशोबाहुर्देवाग्निश्चाग्निदेववाक्।।५५।। अग्निगुप्तोऽथ मित्राग्निर्हलभृत् समहीधरः। महेन्द्रो वसुदेवश्च ततः पश्चाद्वसुन्धरः।।५६।। अचलो मेरुसंज्ञश्च ततो मेरूधनाह्वयः। मेरुभूतिर्यशोयज्ञप्रान्तसर्वाभिधानकौ।।५७।। सर्वगुप्तःप्रियप्रान्तसर्वो देवान्तसर्ववाक्। सर्वादिविजयो गुप्तो विजयादिस्ततः परः।।५८।। विजयमित्रो विजयिलोऽपराजितसंज्ञकः। वसुमित्रःसविश्वादिसेनः सेनान्तसाधुवाव्।।५९।। देवान्तसत्यः सत्यान्तदेवो गुप्तान्तसत्यवाक्। सत्यमित्रः सतां ज्येष्ठःसंमितो निर्मलो गुणैः।। ६०।। विनीतः संवरो…
आचार्य कुन्दकुन्द और उनका साहित्य जैन मूल संघ के आर्श स्वरूप के दृढ़ स्थितिकरण के महनीय कार्य के सम्पादन हेतु आपका नाम सर्वाेपरि रूप में अत्यन्त विनय के साथ लिया जाता है। कहा भी है, वन्द्यो विभुर्न भुवि कैरिह कौण्डकुन्दः। कुन्दप्रभाप्रणयिकीर्त्तिविभूशिताषः।। यष्चारुचारणकराम्बुजचत्र्चरीकष् चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिश्ठाम् ।। दि० जैन सम्प्रदाय में तो प्रत्येक…
देवदर्शन का माहात्म्य सुधेश- पिताजी ! आज मैंने पद्मपुराण में ऐसा पढ़ा है कि -“जो मनुष्य जिनप्रतिमा के दर्शन का चिंतवन करता है वह बेला का,जो गमन का अभिलाषी होता है वह तेला का,जो जाने का आरम्भ करता है वह चार उपवास का,जो जाने लगता है वह पाँच उपवास का,जो कुछ दूर पहुँच जाता है…
टीबी के मरीजों को मक्के की रोटी से होता है फायदा मक्के की खेती संपूर्ण भारत में की जाती है । मक्के के दानों से पकौड़े और अन्य कई पकवान बनाए जाते हैं। मक्के के नर्म हरे भुट्टे सेंककर खाने से उसके दाने बड़े स्वादिष्ट लगते हैं और पौष्टिक भी होते हैं। मक्के का वानस्पतिक…