चरित्त :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष]] == चरित्त : == चारित्तं समभावो —पंचास्तिकाय : १०७ समभाव ही चारित्र है। असुहादो विणिवित्ती, सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं। —द्रवसंग्रह : ४५ अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति करना—इसे ही चारित्र समझना चाहिए। थोवम्मि सिक्खिदे जिणइ, बहुसुदं जो चरित्तसंपुण्णो। जो पुण चरित्तहीणो, िंक तस्स सुदेण बहुएण।। —मूलाचार : १०-६…