क्षीणकषाय :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == क्षीणकषाय : == विशेषक्षीणमोह:, स्फटिकामल—भाजनोदक—समचित्त:। क्षीणकषायो भण्यते, निग्र्रंथो वीतरागै:।। —समणसुत्त : ५६१ सम्पूर्ण मोह पूरी तरह नष्ट हो जाने से जिनका चित्त स्फटिकमणि के पात्र में रखे हुए स्वच्छ जल की तरह निर्मल हो जाता है, उन्हें वीतराग देव ने क्षीणकषाय निग्र्रन्थ कहा है।