वर्तमान युग में धर्म की प्रासंगिकता ‘‘बदल गया परिवेश देश का, बदल गये आचार—विचार, खान—पान भी बदल गया है, बदले हैं नैतिक आधार। मायाचार का जाल है फैला, झुलस रहा है धर्माचार, हिंसा —हत्या की भट्टी में, जलने लगे हैं सद् आचार, सत्य तिरोहित अंधकार में , पनप रहा है भ्रष्टाचार, विश्व समस्या ग्रस्त हो…
श्री दिगम्बर जैन अतिशय चमत्कारी क्षेत्र टोड़ी-फतेहपुर श्री दिगम्बर जैन अतिशय चमत्कारी टोड़ी-फतेहपुर उत्तरप्रदेश के झाँसी जिले में स्थित है। इसकी तहसील महरौली है। मऊरानीपुर रेलवे स्टेशन से ३० कि.मी. दूर झाँसी से ९० कि.मी. दूर तथा बस स्टैण्ड टोड़ी फतेहपुर से यह ५० किमी. दूर है। गुरसराय मार्ग पर पंडवाहा तिराहा ५ कि.मी.है, टैक्सी…
रत्नावली व्रत इस व्रत में भी आश्विन शुक्ला तृतीया, पञ्चमी, अष्टमी तथा कार्तिक कृष्णा द्वितीया, पञ्चमी और अष्टमी इस प्रकार प्रत्येक महीने में छ: उपवास करने चाहिए। बारह महीनों में कुल ७२ उपवास उपर्युक्त तिथियों में ही करने होते हैं। यह द्वादश मासवाली रत्नावली है। सावधिक मासिक रत्नावली व्रत नहीं होता है। विवेचन- रत्नावली व्रत…
कोलेस्ट्रोल की मात्रा घटाएं व हृदय रोगों से निजात पाएं कोलोरेडो स्टेट यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ व डायटिशियन ब्रेन्डा डेवी द्वारा किए गए शोध के अनुसार रेशायुक्त भोजन लेने से वसा पर तो नियंत्रण होता ही है साथ ही कोलेस्ट्राल का स्तर भी कम होता है। अगर भोजन में अनाज व ओटमील का सेवन किया जाए…
वास्तु शांति की आवश्यकता एवं वैशिष्ट्य शब्द की संरचना के मूल में वस्तु शब्द है। यह संस्कृत के ‘वास’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है‘ निवास करना’। यह किसी के स्थिर होने की सूचना देता है। वास्तु के मूल में भूमि और उसके ऊपर मिट्टी सीमेन्ट, चूना, ईंट, पत्थर, लोहा, लकड़ी आदि से निर्मित…
मौन एक साधना प्रस्तुति- स्वस्तिश्री क्षुल्लक अतुल्य सागर मौन… केवल वाणी से कुछ न कहने का नाम नहीं, मौन तो एक क्रिया है जो आपकी चुप्पी से शुरू होती है और गहन सत्य की खोज तक अनवरत चलती रहती है। कुछ न कहना तो मौन की शुरूआत मात्र है, वास्तविकता में मौन दसों इन्द्रियों को…
भवदेवब्राह्मणस्य दीक्षा ग्रहणं (भवदेव ब्राह्मण का दीक्षा ग्रहण) संस्कृत भाषा में- अथ कदाचित् विहरन् सन् ससंघ: श्री सौधर्माचार्यवर्य: भावदेवमुनिना सार्धं तत्रैव वद्र्धमानपुरे आगत:। तदानीं विशुद्धबुद्धिधारी भावदेवमुनि: स्वानुजं भावदेवं स्मरतिस्म, असौ नगरे विख्यातो विषयासक्त: एकांतमतानुयायी स्वहितं नाज्ञासीत्। करुणाद्र्रमना: भावदेवमुनि: तस्य संबोधनार्थं गुरोरनुज्ञां गृहीत्वा संघात् निर्गत्य भवदेवगृहे आगत्याहारं लब्धवान्। अनंतरं धर्मामृतै: परितप्र्य स्वस्थानं प्रति आगच्छत्, भवदेवोऽपि विनयेन्…