जीवदया परमधर्म है श्री गौतमस्वामी द्वारा रचित जिस यति प्रतिक्रमण का पाठ हम साधुवर्ग हर पन्द्रह दिनों में करते हैं उसमें स्पष्ट कहा है कि- सुदं मे आउस्संतो ! इह खलु समणेण भयवदा महदिमहावीरेण समणाणं पंचमहव्वदाणि सम्मं धम्मं उवदेसिदाणि। तं जहा-पढमे महव्वदे पाणादिवादादो वेरमणं । हे आयुष्मन्त भव्यों ! मैंने (गौतम स्वामी ने) इस भरत…
गृहस्थ आश्रम गृहस्थों के छह आर्यकर्म होते हैं-इज्या, वार्ता, दत्ति, स्वाध्याय, संयम और तप। इज्या- अरहंत भगवान् की पूजा को इज्या कहते हैं। इज्या के पाँच भेद हैं- नित्यमह, चतुर्मुख, कल्पवृक्ष, आष्टान्हिक और ऐन्द्रध्वज। नित्यमह- प्रतिदिन शक्ति के अनुसार अपने घर से गंध, पुष्प, अक्षत आदि ले जाकर अर्हंत की पूजा करना, जिनभवन, जिन प्रतिमा…
उत्तम मार्दव धर्म श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में मार्दव धर्म के विषय में कहा है मद्दउ—भाव—मद्दणु माण—णिंकदणु दय—धम्महु मूल जि विमलु।सव्वहं—हययारउ गुण—गण—सारउ तिसहु वउ संजम सहलु।।मद्दउ माण—कसाय—बिहंडणु, मद्दउ पंचिंदिय—मण—दंडणु।मद्दउ धम्मे करुणा—बल्ली, पसरइ चित्त—महीह णवल्ली।।मद्दउ जिणवर—भत्ति पयासइ, मद्दउ कुमइ—पसरूणिण्णासइ।मद्दवेण बहुविणय पवट्टइ—मद्दवेण जणवइरू उहट्टइ।।मद्दवेण परिणाम—विसुद्धी, मद्दवेण विहु लोयहं सिद्धी।मद्दवेण दो—विहु तउ सोहइ, मद्दवेण णरु जितगु…
एक भव को छोड़कर दूसरे भव के ग्रहण करने का नाम गति है। गति के चार भेद हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति।
आनादिकाल से जीवचारों गतियोंमें भ्रमण कर रहा है
शुभ कर्म करने से देव और मनुष्यगति को प्राप्त करता है|
अशुभ कर्म करने से तिर्यंच और नरकगति को प्राप्त करता है |
तीर्थ विकास का संक्षिप्त इतिहास यह काकंदी तीर्थ जैनधर्म के नवमें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंतनाथ की जन्मभूमि से पवित्र तीर्थ है। यहाँ पर शताब्दियों से एक लघुकाय मंदिर बना हुआ है, जिसका जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा है। मंदिर की वेदी में ५ प्रतिमाएँ विराजमान थीं जिनकी दो बार में चोरी हो गई। दुर्भाग्य से…
मुनिधर्म का कथन आचारो दशधर्मसंयमतपोमूलोत्तराख्यागुणा: मिथ्यामोहमदोज्झनं शमदमध्यानप्रमादस्थिति:। वैराग्यं समयोपवृंहणगुणा रत्नत्रयं निर्मलं, पय्र्यन्ते च समाधिरक्षपदानन्दाय धर्मो यते: ।।३८।। अर्थ—जनधर्म में दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तप आचार, वीर्याचार इस प्रकार पांच प्रकार के आचार तथा उत्तमक्षमा, उत्तममार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तमतप, उत्तम त्याग, उत्तम आविंâचन्य तथा उत्तमब्रह्मचर्य इस प्रकार का दश धर्म तथा…
धातकीखण्ड द्वीप में धातकी वृक्ष के परिवार वृक्षों की संख्या (तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से) उत्तरदेवकुरूसुं खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा। चेट्ठंति य गुणणामो तेण पुढं धादईसंडो।।२६००।। धादइतरूण ताणं परिवारदुमा भवंति एदिंस्स। दीवम्मि पंचलक्खा सट्ठिसहस्साणि चउसयासीदी।।२६०१।। ५६०४८० । पियदंसणो पभासो अहिवइदेवा वसंति तेसु दुवे। सम्मत्तरयणजुत्ता वरभूसणभूसिदायारा।।२६०२।। आदरअणादराणं परिवारादो भवंति एदाणं। दुगुणा परिवारसुरा पुव्वोदिदवण्णणेहिं जुदा।।२६०३।। धातकीखण्ड द्वीप में धातकी वृक्ष…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == परस्त्रीगमन : == प्राणसंदेह—जननं परमं वैरकारणम्। लोकद्वयविरुद्धं च, परस्त्रीगमनं त्यजेत्।। —योगशास्त्र : २-९७ परस्त्रीगमन प्राण—नाश के संदेह को उत्पन्न करने वाला है। परम वैर का कारण है और इहलोक और परलोक—दोनों लोकों को नष्ट करने वाला है, अत: परस्त्रीगमन को त्याग देना चाहिए। सर्वस्वहरणं बन्धं, शरीरावयवच्छिदाम्। मृतश्च नरकं…