प्रवचनवत्सलत्व भावना वत्से धेनुवत्सधर्मणि स्नेह: प्रवचनवत्सलत्वम्।।१६।। जैसे गाय अपने बछड़े में अकृत्रिम स्नेह करती है वैसे ही धर्मात्माओं को देखकर उनके प्रति स्नेह से आद्र्रचित्त का हो जाना प्रवचनवत्सलत्व है। जो सहधर्मियों में स्नेह है वही प्रवचन स्नेह है। यहाँ प्रवचन शब्द में चतुर्विध संघ आ जाता है-मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। विष्णुकुमार मुनि का…