४. अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति इन सात प्रकृतियों के उपशम से उपशम सम्यक्त्व, क्षय से क्षायिक सम्यक्त्व एवं सम्यक्त्व प्रकृति के उदय से वेदक सम्यक्त्व होता है। इस वेदक सम्यक्त्व में चल, मलिन और अगाढ़ दोष होते रहते हैं। यह सम्यक्त्व भी नित्य ही अर्थात् जघन्य अंतर्मुहूर्त…
११. उपशांतमोह गुणस्थान इस गुणस्थान में मोहनीय कर्म की सम्पूर्ण प्रकृतियों का उपशम हो जाने से परिणाम पूर्णतया निर्मल हो जाते हैं और यथाख्यात चारित्र प्रगट हो जाता है अतएव यहाँ उपशांत वीतरागछद्मस्थ कहलाते हैं।
३. मिश्र गुणस्थान दर्शनमोहनीय की सम्यक्त्वमिथ्यात्व नामक प्रकृति के उदय से सम्यक्त्व या मिथ्यात्वरूप परिणाम न होकर जो मिश्र परिणाम होते हैं, उसे मिश्र गुणस्थान कहते हैं। जैसे—दही और गुड़ के मिश्रण का स्वाद मिश्ररूप है वैसे ही यहाँ मिश्र श्रद्धान है। इस गुणस्थान में संयम, देशव्रत और मारणांतिक समुद्घात नहीं होता है तथा मृत्यु…
छठा व्यसन (चोरी करना गरीबी को आमंत्रण देता है) बिना दिये किसी की वस्तु लेने को चोरी कहते हैं। चोरी को ही अपनी आजीविका का साधन बना लेना चोरी व्यसन है। जिस मनुष्य को इस निंदनीय कर्म को करने की आदत पड़ जाती है वह धन संपत्तियुक्त होते हुए भी तीव्र लोभ अथवा अन्य व्यसनों…
चोरी करना महापाप है लेखिका – आर्यिका श्री चंदनामती माताजी सुरेन्द्र-महेन्द्र भाई! आज तो यार, बड़े खुश नजर आ रहे हो। क्या बात है ? महेन्द्र-खुश तो मैं हमेशा ही रहता हूँ। वैसे आज मैं प्रसन्न तो बहुत हूं लेकिन तुम्हें बताऊंगा नहीं। कहीं तुमने मेरी पोल खोल दी तो……… सुरेन्द्रअरे! तुम्हें मेरे ऊपर…
तृतीय व्यसन (मदिरापान दुःख का कारण है !) सात व्यसनों में मदिरापान तृतीय व्यसन है जो कि प्रत्यक्ष में ही दुःख का कारण दिखाई देता है। पं. दौलतराम जी ने छहढाला में कहा है—जे त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहें दुखतें भयवन्त किन्तु दुःख से डरने वाले प्राणी जब स्वयं दुःखोत्पादक सामग्री एकत्रित करने…
पांचवां व्यसन (शिकार खेलना प्रकृति के प्रति अपराध है) अपनी रसना इन्द्रिय की लोलुपता से तथा अपने शौक पूरे करने के लिये अथवा कौतुकवश जंगल के निरपराधी, मूक प्राणियों को मारना शिकार कहलाता है। प्राचीनकाल से ही इस धरती पर शिकारी राजा आदि होते आए हैं जो अत्यन्त निष्ठुर बनकर पशु, पक्षियों को मारकर अपनी…
शिकार खेलना पाप है लेखिका – आर्यिका श्री चंदनामती माताजी रमेश-क्यों सुरेश! तुम भी मेरे साथ चलोगे क्या आज ? सुरेश-कहाँ मेरे मित्र! बताओ तो,मैं तुम्हारा साथ कैसे छोड़ सकता हूं। रमेश-तब तो बड़ा मजा आएगा। जंगल में भागते हुए पशुओं पर निशाना लगाने में बड़ा आनंद आता है। सुरेश-अरे राम, राम! यह क्या कहा…