णमोकार मन्त्र का महत्त्व णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। नरेश – मित्र! मैंने सुना है कि णमोकार मन्त्र के प्रभाव से कुत्ता देव हो गया, सो कैसे? सुरेश –हाँ बन्धु! क्या तुम्हारी माँ ने कभी तुम्हें णमोकार मन्त्र का महत्त्व नहीं सुनाया? सुनो, मैं सुनाता हूँ। नरेश – मित्र! मैं…
णमोकार मन्त्र का प्रभाव सुरेन्द्र- भइया योगेन्द्र! आज मैंने मुनि महाराज के उपदेशों में सुना कि बन्दर भी णमोकार मन्त्र के प्रभाव से संसार समुद्र से तिर गया है तो मनुष्यों की तो बात ही क्या? सो भइया बन्दर की क्या कहानी है, मुझे सुना दो। योगेन्द्र- हाँ, हाँ, सुनो मैं तुम्हें सुनाता हूँ। किसी…
हरिषेण चक्रवर्ती कांपिल्यनगर के राजा सिंहध्वज की पट्टरानी वप्रादेवी थीं। उनके हरिषेण नाम का पुत्र था। उन राजा की दूसरी रानी महालक्ष्मी थी, यह अत्यंत गर्विष्ठ थी। किसी समय आष्टान्हिक पर्व में महामहोत्सव करके महारानी वप्रा ने जिनेन्द्र भगवान का रथोत्सव कराने का निश्चय किया। तभी रानी महालक्ष्मी ने जैनरथ के विरुद्ध होकर उसे रोक…
शक्ति है तो सब कुछ तुम्हारा है बालक चंद्रगुप्त खेल रहे थे। उसी समय चाण्क्य नाम के ब्राह्मण वहां आए। चाणक्य ने देखा कि खेल में बच्चों का दरबार लगा हुआ है। उनमें एक तेजस्वी बालक राजा बना हुआ है। सामने एक बालक अपराधी के रूप में खड़ा है। राजा बना बालक न्याय कर रहा…
(१) कौरव-पाण्डव कुरुवंश परम्परा कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में परम्परागत कुरुवंशियों का राज्य चला आ रहा था। उन्हीं में शान्तनु नाम के राजा हुए। उनकी ‘‘सबकी’’ नाम की रानी से पाराशर नाम का पुत्र हुआ। रत्नपुर नगर के ‘‘जन्हु’’ नामक विद्याधर राजा की ‘‘गंगा’’ नाम की कन्या थी। विद्याधर राजा ने पाराशर के साथ…
ऐरावत हाथी का वर्णन अभियोगाणं अहिवइदेवो चेट्ठेदि दक्खिणिंदेसुं। बालकणामो उत्तरइंदेसुं पुप्फदंतो य।।२७७।। सक्कदुगम्मि य वाहणदेवा एरावदणाम हत्थि कुव्वंंति। विक्किरियाओ लक्खं उच्छेहं जोयणा दीहं।।२७८।। १०००००। एदाणं बत्तीसं होंति मुहा दिव्वरयणदामजुदा। पुह पुह रुणंति किंकिणिकोलाहलसद्दकयसोहा।।२७९ एक्केक्कमुहे चंचलचंदुज्जलचमरचारूवम्मि। चत्तारि होंति दंता धवला वररयणभरखचिदा।।२८०।। एक्केक्कम्मि विसाणे एक्केक्कसरोवरो विमलवारी। एक्केक्कसरवरम्मि य एक्केक्वं कमलवणसंडा।।२८१।। एक्केक्ककमलसंडे बत्तीस विकस्सरा महापउमा। एक्केक्कमहापउमं एक्केक्कजोयणं पमाणेणं।।२८२।।…
चन्द्र सूर्य के विमान का वर्णन चित्रा पृथ्वी से ऊपर आठ सौ अस्सी योजन जाकर आकाश में चन्द्रों के मण्डल हैं ।।३६।। ८८०। उत्तान अर्थात् ऊध्र्वमुखरूप से अवस्थित अर्धगोलक के सदृश चन्द्रों के मणिमय विमान हैं। उनकी पृृथक् पृथक् अतिशय शीतल एवं मन्द किरणें बारह हजार प्रमाण हैं।।३७।। उनमें स्थित पृथिवी जीव चूंकि उद्योत नामकर्म…
पाण्डुक शिला का वर्णन चूलिकोत्तरपूर्वस्यां पाण्डुका विमला शिला। पाण्डुकम्बलनामा च रक्तान्या रक्तकम्बला।।२८२।। विदिक्षु व्रमशो हैमी राजती तापनीयिका। लोहिताक्षमयी चैता अर्धचन्द्रोपमाः शिलाः।।२८३।। अष्टोच्छ्र्रयाः शतं दीर्घा रुन्द्रा पञ्चाशर्तं च ताः। शिले पाण्डुकरक्ताख्ये दीर्घे पूर्वापरेण च।।२८४।। द्वे पाण्डुककम्बलाख्या च रक्तकम्बलसंज्ञिका। दक्षिणोत्तरदीर्घे ताश्चास्थिरस्थिरभूमुखाः।।२८५।। धनुःपञ्चशतं दीर्घं मूले तावच्च विस्तृतम्। अग्रे तदर्धविस्तारं एकशोऽत्रासनत्रयम्।।२८६।। शक्रस्य दक्षिणं तेषु वीशानस्योत्तरं स्मृतम्। मध्यमं जिनदेवानां तानि…