शुभनंदि!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभनंदि – Shubhanandi. A great saint well-versed in ‘Shat Khandagam’, the spiritual teacher of Bappdev. बप्पदेव के शिक्षा गुरु तथा षटखण्डागम के ज्ञाता, रविनंदि के सहचर ” समय ई.श. 1 “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभनंदि – Shubhanandi. A great saint well-versed in ‘Shat Khandagam’, the spiritual teacher of Bappdev. बप्पदेव के शिक्षा गुरु तथा षटखण्डागम के ज्ञाता, रविनंदि के सहचर ” समय ई.श. 1 “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभध्यान – Shubhadhyaana. Auspicious involvement. शुभद्ध्यान और शुक्लध्यान जो मोक्ष के कारण हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभ तैजस समुद्र्घात – Shubha Taijasa Samudghaata. Emanation of auspicious radiant effigy like body (spiritual form) from a super saint causing prosperity all around. ऋद्धिधारी मुनि को दया अनुकंपा आने पर दाहिने कंधे से हंस और शंख वर्ण वाला शरीर निकलकर जो दुर्भिक्ष आदि सर्व बाधा को नष्ट कर सुख उत्पन्न करता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभ तैजस शरीर – Shubha Taijasa Shareera. Auspicious lustrous body possessed by super saints. ऋद्धिधारी मुनियों के औदारिक शरीर से उत्पन्न होने वाला तेज़ और प्रभागुण से युक्त शरीर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभचंद्र – Shubhachandra. Name of a great Acharya, the writer of Gyanamav Granth, The 8th Balbhadra of predestined Utsarpini Kal. एक महान आचार्य-राजा भर्तृहरि के भाई, ज्ञानार्णव ग्रंथ के रचियता (ई.सं. 1003-1068) ” भरतक्षेत्र के आगामी उत्सर्पिणी काल के 8वें बलभद्र “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभ काययोग – Shubha Kaayayoga. Bodily virtuous activities. पूजा भक्ति, व्रतादि रूप काय की चेष्टा “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभकर्म – Shubha Karma. Auspicious or virtuous Karmas or activities. पुण्य लाने वाले कार्य, पुण्य फल देने वाले साता वेदनीय आदि कर्म “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभकरण चिन्ह – Shubhakarana Chinha. Virtuous symbols (marks)on the body. सम्यक्त्व या अवधिज्ञानी के नाभि के ऊपर शंख आदि शुभ आकार वाले चिन्ह “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभ उपशम – Shubha Upashama. Right subsidence. प्रशस्त उपशम “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूलसंघ–Mulasangh. An ancient group of Digambar Jain saints (associated after the salvation of Lord Mahavira). दिगम्बर जैनसाधुओका प्राचीन संघ; जिनके आचार्यो की पट्टावली में प्रथम श्री कुन्दकुन्द आचार्य का नाम लिया जाता है”