विवृत योनि!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवृत योनि – Vivrta Yoni. Opened female genital organ. योनि के ९ भेदों में एक भेद; खुला हुआ उत्पत्तिस्थान “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवृत योनि – Vivrta Yoni. Opened female genital organ. योनि के ९ भेदों में एक भेद; खुला हुआ उत्पत्तिस्थान “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विविक्त शय्यासन – Vivikta Sayyasana. Isolated place for sleeping or rest. पांचवां बाहा तप-व्रत की शुध्दि के लिए, पशु, स्त्री आदि से रहित एकांत प्रासुक स्थान में साधु के द्वारा ध्यान – अध्ययन के लिए शय्या व आसन ग्रहण करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वानरवंश – Vaanaravansh.: Name of a dynasty of Vidyadhar kings. वानर चिन्हांकित ध्वजाओं को धारण करने वाले विद्याधर राजाओं का वंश ,इसका आरम्भ किष्कुपुर के विद्याधर राजा अमरप्रभ से हुआ था “जैसे हनुमान ,सुग्रीव,बाली आदि वानरवंशीय थे, उनके शरीर का आकर आदि वानर के जैसे नहीं था “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विविक्त वसतिका – Vivikta Vasatika. Lonely or isolated place (hermitage). एकांत , ध्यान आदि के योग्य पवित्र-निर्दोष, साधु के रहने का स्थान “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वानरद्वीप –Vaanaradviipa.: Name of an island of Lanka. लंका का रमणीय एवं सुरक्षित द्वीप ,रक्षक वंशी राजा कीर्तिध्वज ने यह द्वीप अपने साले श्रीकंठ को दिया था ” श्रीकंठ ने इसी द्वीप के किष्कु पर्वत पर किष्कुपुर नगर बसाया था “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुद्ध – Shuddha. Pure, free from faults, i.e. sins or errors. विशुद्ध, निर्दोष, विमल ” द्रव्य, स्वभाव, परमभाव, परमार्थ तत्व, शुद्ध, परम ये सब एकार्थवाची हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विविक्त – Vivikta. Isolated, Solitary, Lonely, Separated. अकेला, एकाकी, निर्दोष “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वादीभसिंह (ओडयदेव )- Vaadibhasingha (Odayadeva). Name of the disciple of Pushpasen. अकलंक देव के गुरु भाई पुष्पसेन से शिष्य (ई.620 – 680) – छत्र चूड़ामणि, गद्य चिंतामणि के रचयिता “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवाहिता स्त्री – Vivahita Stri. Married Woman, accepted ritually. देवशास्त्रगुरु को नमस्कार कर तथा अपने भाई – बन्धुओं की साक्षीपूर्वक जिस कन्या के साथ विवाह किया जाता है वह विवाह स्त्री कहलाती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वादीभसिंह (अजितसेन )- Vaadibhasingha (Ajitasena).: Name of the disciple of Vadiraj-2. वादिराज-2 के शिष्य ,यादवराज ऐरेयंग शांतराज तेलगु (ई.-1103 ) के गुरु “स्याद्वाद सिद्धि के रचयिता “