पुद्गल द्रव्य विशेष गुण!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गल द्रव्य विशेष गुण – Pudgala Dravya Visesa Guna. Particular properties of the matter (Pudgal). स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, मुर्तत्व, अचेतनत्व ये ६ गुण पुद्गल द्रव्य के विशेष गुण हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गल द्रव्य विशेष गुण – Pudgala Dravya Visesa Guna. Particular properties of the matter (Pudgal). स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, मुर्तत्व, अचेतनत्व ये ६ गुण पुद्गल द्रव्य के विशेष गुण हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गल द्रव्य पर्याय – Pudgala Dravya Paryaya. Different states (forms) of matters. पुद्गल द्रव्य की सूक्ष्म, स्कंध आदि अवस्थायें “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गलक्षेप – Pudgalaksepa. An infraction of Deshvrat- to throw stone etc. intentionally out of the restricted area of one to solve own purpose. देशव्रत का एक अतिचार; प्रणाम किये हुए स्थान से बाहर कंकड़ आदि फेंककर अपना प्रयोजन सिध्द करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गल अस्तिकाय – Pudgala Astikaya. One of the five Astikayas. पांच अस्तिकायों में एक; इसमें एक प्रदेश वाले अणु को भी प्रदेश प्रचय की शक्तिरूप स्वभाव के कारण अस्तिकाय कहा है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गल अनुभाग – Pudgala Anubhaga. Fruitional power of Karmas (Pudgal). ज्वर आदि रोगों के उत्पन्न करने और विनाश करने का नाम पुद्गलानुभाग है, अर्थात् पुद्गलकर्मों के शुभाशुभ फल देने की शक्ति “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गल – Pudgala. Matter or substance with the property of touch, taste, smell & colour etc. जो पूरण- गलन स्वभाव सहित है तथा जिसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण ये चारों गुण पाये जाते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुण्यास्त्रव व्रत – Punyasrava Vrata. A type of vows to be observed for particular 108 days for the earning of merits in the life. समरंभ, समारंभ, आरंभ को मन-वचन-काय से गुणा करने से प्राप्त ९ और फिर इस ९ में कृत, कारित, अनुमोदन से गुणा करने से प्राप्त २७ और २७ में क्रोध, मान,…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुण्यास्त्रवकथाकोष – Punyanubamdhi Punya. A book written by Pandit Ramchandra. ई.श.१३ के मध्यपाद में पं. रामचंद्र द्वारा रचित एक ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुण्यानुबंधी पुण्य – Punyanubandhi Punya. Right use of possessed right virtues & qualities. पुण्य के उदय से प्राप्त बुध्दि, कौशल आदि क्षमताओं को पुण्यार्जन में लगा देना “