समाज और संस्कारों के निर्माण में नारी का योगदान श्रीमति सुलेखा जैन, बीना नारी सृष्टि का आधार है। नारी के बिना संसार की हर रचना अपूर्ण तथा रंगहीन है। नारी मृदु होते हुए भी कठोर है। उसमें पृथ्वी जैसी सहनशीलता, सूर्य जैसा ओज तथा सागर जैसा गांभीर्य एक साथ दृष्टिगोचर होता है । नारी के…
५. वर्तमान में निर्दोष मुनि इस युग में निर्दोष साधु समुदाय रहेगा कुंदकुंदादि निर्ग्रन्थाचार्य स्वयं पंचमकाल में हुए हैं, और उन्होंने स्वयं पंचमकाल में निर्दोष मुनियों का अस्तित्व सिद्ध किया है- भगवान श्री कुन्दकुन्ददेव कहते हैं- ‘‘इस भरतक्षेत्र में और पंचमकाल में आत्मस्वभाव में स्थित होने पर साधु को धर्मध्यान होता है। जो इस बात…
दर्शन समीक्षा जिसके द्वारा वस्तुतत्त्व का निर्णय किया जाता है, वह दर्शन शास्त्र है। कहा भी है-‘दृश्यते निर्णीयते वस्तुतत्त्वमनेनेति दर्शनम्’। इस लक्षण से दर्शन शास्त्र तर्व-वितर्व मन्थन ये परीक्षास्वरूप हैं, जो कि तत्त्वों के निर्णय में प्रयोजक हैं, जैसे-यह संसार नित्य है या अनित्य? इसकी सृष्टि करने वाला कोई है या नहीं? आत्मा का स्वरूप…
पर्यावरण संरक्षण के परम्परागत तरीके सारांश प्रस्तुत आलेख में प्राचीन साहित्य में उपलब्ध पर्यावरण संरक्षण विषयक सन्दर्भों को संकलित करने के उपरान्त जैन गृहस्थों एवं मुनियों की चर्या (जीवन पद्धति) से होने वाले पर्यावरण संरक्षण की चर्चा की गई है। ‘विश्व भरण पोषण करे जोई, ताकर भरत असो होई’ अर्थात् जो राष्ट्र/देश विश्व को ज्ञान—विज्ञान, दर्शन—आध्यात्म,…
श्रावक के लक्षण जैन धर्म में मद्य—मांस—मधु का सेवन न करना, सात व्यसनों से सदा दूर रहना, पांचों पापों का स्थूल त्याग होना, रात्रि में भोजन न करना, बिना छने जल का उपयोग न करना, प्राणीमात्र के प्रति करूणा भाव होना और नित्य देवदर्शन व स्वाध्याय करना । यद्यपि सामान्य श्रावक अभी अव्रती है, उसने…
ब्राह्मी- सुन्दरी ने दीक्षा क्यों ग्रहण की ? महापुराण के अन्तर्गत आदिपुराण ग्रन्थ के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी-सुन्दरी को युग की आदि में सर्वप्रथम विद्या ग्रहण कराया था अत: वे अपने पिता त्रैलोक्यगुरु के अनुग्रह से सरस्वती की साक्षात् प्रतिमा के समान बन गई थीं पुन: भरत आदि पुत्रों को भी भगवान…
षट्काल परिवर्तन संजय – गुरु जी! आपने कहा था कि विदेह में षट्काल परिवर्तन नहीं होता, सो वह क्या है? गुरुजी – सुनो! काल के दो भेद हैं-उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। जिसमें जीवों की आयु, ऊँचाई, भोगोपभोग संपदा और सुख आदि बढ़ते जावें, वह उत्सर्पिणी है और जिसमें घटते जावें, वह अवसर्पिणी है। इन दोनों को…
पर्यावरण-संरक्षण और तीर्थंकर पार्श्वनाथ —प्राचार्य निहालचंद जैन, बीना (म.प्र.) आज सम्पूर्ण विश्व में चिंतन, चेतावनी और चिंता का दौर चल रहा है। पृथ्वी की सुरक्षा के लिए चेतावनी का विषय है पर्यावरण, चिन्तन का विषय है। पर्यावरण-प्रदूषण और चिंता है कि प्रदूषण से पर्यावरण किस प्रकार संरक्षित किया जाए। जीवन के संदर्भ में पर्यावरण-प्रदूषण दो…