श्रावक के ४ धर्म कसायपाहुड़ आदि ग्रन्थों में श्रावक के चार धर्म-कर्तव्य माने हैं—‘‘दाणं पूजा सीलमुववासो चेदि चउव्विहो सावयधम्मो।’’अर्थात् दान, पूजा, शील और उपवास में चार श्रावकों के धर्म हैं। रयणसार ग्रन्थ में श्री कुन्दकुन्ददेव ने भी श्रावक के ४ धर्म बताए हैं— दाणं पूया सीलं उववासं बहुविहं पि खवणं पि।सम्मजुदं मोक्खसुहं सम्मविणा दीहसंसारं।।१।। दानं…
तात्पर्यार्थ में शान्तरस एवं मार्गदर्शन जिनागम के स्वाध्याय का लक्ष्य वस्तुतत्वविचार, वैराग्य एवं आत्मविशुद्धि है। वह भावविशुद्धि पर आधारित है। जब मन शान्त हो जाता है तब आत्मानुभव रूप शान्तरस का आस्वाद प्राप्त होता है, कहा भी है- वस्तु विचारत ध्यावतैं मन पावै विश्राम। रस स्वादत सुख ऊपजै अनुभव याको नाम।। इसी आत्मानुभव रूप अमृत…