भारतदेश में प्राचीनकाल से पर्व एवं त्योहारों को मनाने की परम्परा है | जैनधर्म में भी अनेक पर्वों को मनाने की परम्परा है जो दो प्रकार के हैं – १. सादि पर्व २. अनादि पर्व | सादि पर्व जो किसी के द्वारा…
सिद्धशिला विधान की रचना करके पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने हम सभी को सिद्धशिला के ज्ञान से परिचित कराया है ।
तीन भुवन के मस्तक पर ईषत प्रग्भार नाम की आठवीं पृथ्वी है, इस आठवीं पृथ्वी के मध्य में रजतमयी सिद्धशिला है आठवीं पृथ्वी के ऊपर 7050 धनुष जाकर सिद्धों का आवास है इन सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना 525 धनुष एवं जघन्य साढ़े तीन हाथ होती है।
इस विधान में पूज्य माता जी ने 218 अर्घ्यों योग के माध्यम से ढाईदीप से (जंबूद्वीप लवण समुद्र धातकीखण्ड द्वीप कालोदधी समुद्र पुष्कारार्ध द्वीप) मोक्ष प्राप्त सभी सिद्ध भगवन्तों की पूजा भक्ति करने का बहुत ही सुंदर माध्यम प्रदान किया है यह विधान आपके पुण्य को वृद्धिंगत करें , यही मंगल कामना है
तीर्थंकरों के न्हवन जल से पवित्र और तीनों लोकों में सबसे ऊंचा पर्वत है – सुदर्शन मेरु पर्वत,जो जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र के बीचोंबीच में स्थित है | उस सुमेरु पर्वत में चार वनों में चार -चार ऐसे १६ अ…
अनेक पूजन विधान की तरह यह भी विधान परम पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिकका श्री ज्ञानमती माताजी की सरस लेखनी द्वारा विविध शब्दों में निबंध किया गया है। इस विधान में जिनेंद्र देव के 1008 नाम मंत्रों से स्तुति की गई है और इसमें 11 पूजा है। एक- एक पूजा में 100- 100 अर्घ्यों को समाहित किया गया है
इस विधान को करके पूर्ण का अर्जन करें यही मंगल कामना है