इस पुस्तक में पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने तिलोयपण्णत्ति षट्खंडागम पुस्तक 9, आदिपुराण भाग 1 एवं हरिवंशपुराण इन चार ग्रंथों के आधार से समवसरण का सुंदर वर्णन प्रस्तुत किया है। तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से चौबीसों तीर्थंकरों के समवसरण संबंधी संपूर्ण वर्णन का विस्तृत विवेचन किया है, षट्खंडागम, धवला पुस्तक 9 के आधार से भगवान महावीर स्वामी के जीवन चरित्र उनके समवसरण का वर्णन है एवं आदि पुराण से भगवान ऋषभदेव के समवसरण का तथा हरिवंश पुराण से भगवान नेमिनाथ के केवलज्ञान व समवसरण का विस्तृत वर्णन किया गया है
पुस्तक के प्रारंभ में पूज्य माता जी द्वारा रचित “समवसरण वन्दना” में समोसारण का पूरा वर्णन किया गया है और पुस्तक के अंत में समवसरण का ध्यान का वर्णन एवं करने की प्रेरणा दी गई है।
इस पुस्तक को पढ़कर एवं ध्यान को करके अपने जीवन को सफल बनाएं ,यही मंगल कामना है
आचार्य रविषेण द्वारा रचित पद्मपुराण नामक प्राचीन ग्रंथ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के कथानक में उनकी लघु भ्राता शत्रुघ्न द्वारा मथुरा राज्य पर विजय प्राप्त करके शासन करने पर राजा मधुसूदन के दिव्य शूलरत्न के अधिष्ठाता देव द्वारा फैलाई गई महामारी प्रकोप का रोमांचक वर्णन आता है कि किस प्रकार से सप्तऋषि महामुनियों के द्वारा वहां वर्षायोग स्थापना करने से उनके शरीर से स्पर्शित हवा के प्रभाव से वह दै्वी प्रकोप दूर हो गया था और तभी से जिनमंदिरों में इन सप्तर्षि महामुनियों की प्रतिमा विराजमान कर रोग-शोकादि को दूर करने के लिए उनकी भक्ति आराधना की जाती है।
उन्हीं सप्त ऋषियों का विधान पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामति माताजी लिखकर हमें प्रदान किया है।
इस विधान में एक समुच्चय पूजा और सात अलग-अलग मुनियों की पूजा है जो बहुत ही सुंदर तर्ज में लिखा गया है इस विधान को करके आप सभी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें, यही मंगल कामना है।
श्री सरस्वती पूजा विधान यह पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की कृति है इस विधान में पूज्य माता जी ने सरस्वती माता की पूजा उसके पश्चात सरस्वती के108 मंत्र को लेकर 108 अर्घ्य दिए गए हैं, उसके बाद सरस्वती स्तोत्र, चालीसा और साथ ही ज्ञान पच्चीसी व्रत की विधि भी बताई गई है जिसको करके अपने ज्ञान की वृद्धि करें, यही मंगल कामना है