जैनधर्म का परिचय द्वारा-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती माता जी जैनधर्म की परिभाषा भारत की धरती पर प्राचीन काल से प्रचलित अनेकानेक धर्मों में प्राचीनतम धर्म के रूप में माना जाने वाला जैनधर्म है, जो विशेषरूप से जितेन्द्रियता पर आधारित है। जैनधर्म के प्राचीन मनीषी आचार्यों ने इस धर्म की व्याख्या इस प्रकार की है-‘‘कर्मारातीन् जयतीति जिनः’’,…
एकीभाव स्तोत्र की महिमा (आचार्य श्री वादिराज वि. की ११वीं शताब्दी के महान विद्वान् थे। वादिराज यह उनकी पदवी थी, नाम नहीं। जगत्प्रसिद्ध वादियों में उनकी गणना होने से वे वादिराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी गणना जैन साहित्य के प्रमुख आचार्यों में की जाती है।) उन वादिराज मुनिराज का चौलुक्य नरेश जयिंसह प्रथम…
center”210px”वीरसागर]] बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम शिष्य एवं उनकी परम्परा के प्रथम पट्टाचार्य थे ” आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज ने गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजीको आर्यिका दीक्षा प्रदान की “
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वीर नि. सं. २५०९ , सन् १९८३ में यह पुस्तक लिखी गयी | भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव ) के ज्येष्ठ पुत्र भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा , जो कि इस युग के प्रथम चकवर्ती सम्राट हुए एवं अंत में दैगम्बरी दीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त किया , उनके जीवन की प्रमुख घटनाएं को इस उपन्यास में दर्शाया गया है |