इसके प्रथम भाग की श्रंखला में और आगे का ज्ञान अर्जन कराने के लिए दूसरे भाग का प्रकाशन हुआ | इस भाग में चत्तारि मंगल से प्रारम्भ करके भगवान तक २९ पाठों में जैनधर्म के विभिन्न विषयों का ज्ञान समाविष्ट किया गया है | इसका भी अंग्रेजी अनुवाद श्री जिनेन्द्र प्रसाद जैन ठेकेदार ने किया है जो कि प्रकाशित हो चुका है |
जैन संस्कृति के प्रथम तीर्थंकर युगप्रवर्तक देवाधिदेव भगवान आदिनाथ का जीवन वृत्त पाँचों कल्याणक तथा उनके पूर्व भव इस उपन्यास में दिए गए हैं | पुस्तक छोटी होते हुए भी सारगर्भित है | पूज्य माताजी की अपनी यह एक विशिष्ट शैली है कि पुस्तक छोटी हो या बड़ी , पूजाएं हों या स्वाध्याय के ग्रन्थ , सभी में सुगमता से जैनधर्म के चारों अनुयोगों का समावेश कर देती है | माताजी द्वारा लिखी प्रत्येक कों पढ़ने से जीवन की कला प्राप्त होती है |