लघु स्वयंभू स्तोत्र आचार्य प्रभाचंद की कृति है, इस स्तोत्र में चौबीसों ़ तीर्थंकर भगवान की स्तुति की गई है।
इस स्तोत्र का भावानुवाद मुनि श्री विभव सागर महाराज जी ने किया है ।
यह तो सबके लिए मंगलमय हो।
आचार्य वादिराज मुनि द्वारा रचित एकीभाव स्तोत्र का कथानक रोमांचक है एक बार वादिराज मुनिराज को कुष्ठ रोग हो गया था धर्म की रक्षा हेतु स्तोत्र की रचना करके अपना कुष्ठ रोग समाप्त किया था ।
उसी स्तोत्र का संस्कृत से हिंदी भावानुवाद मुनि श्री विभव सागर महाराज ने किया है ।
यह स्तोत्र सभी के लिए मंगलमय हो।