तीनमूर्ति पूजा
वसुनंदी श्रावकाचार के अनुसार धनिया के बराबर मंदिर और सरसों के बराबर जिनप्रतिमा की स्थापना करने वाला तीर्थंकर पद प्राप्त करने के योग्य महान पुण्य का अर्चन कर लेता है |
शायद यही कारण है कि आज भारत के कोने- कोने में अनेक जिनमंदिर और जिनप्रतिमाएं बनवाकर लोग सातिशय पुण्य का बंध कर लेते हैं और ज्ञानदान स्वरूप जिनवाणी को छपाकर आगे केवलज्ञान प्राप्ति की भावना भाते हैं | प्रस्तुत पुस्तक में भगवान ऋषभदेव , चंद्रप्रभु एवं वासुपूज्य भगवान की तीन मूर्तियों की पूजा है , साथ ही समुच्चय चौबीसी एवं महावीर स्वामी की पूजा है | इन भगवन्तों की पूजा करना भी श्रावक का परम कर्तव्य है अतएव इस पुस्तक के माध्यम से देव, शास्त्र , गुरु की भक्ति करके आप सभी महान पुण्य का संचय करें यही मंगल भावना है |