05. व्यवहारनय-निश्र्चयनय
(४) व्यवहारनय-निश्चयनय व्यवहारेण मोक्षस्य, मार्गमाश्रित्य निश्चयात्। मार्ग आश्रियते भव्यै:, क्रम एष सनातन:।।१।। भव्यजन व्यवहार से मोक्षमार्ग का आश्रय लेकर निश्चय से मार्ग का आश्रय लेते हैं अर्थात् व्यवहार मोक्षमार्ग का आश्रय लेकर ही निश्चय मोक्षमार्ग प्राप्त होता है यही क्रम सनातन है-अनादिनिधन है। (प्रत्येक वस्तु अनंतधर्मात्मक है। उनमें से एक-एक धर्म को कहने वाले नय…