अध्यात्म रश्मि (भाग-१)
जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात आचार्य श्री कुन्दकुन्द का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है | उन्होंने ८४ पाहुड ग्रंथों की रचना की जिसमें उनका समयसार नामक ग्रन्थ सर्वाधिक प्रसिद्ध है | इस ग्रन्थ पर आचार्य श्री अमृतचन्द्र सूरी ने आत्मख्याति टीका एवं आचार्य श्री जयसेन स्वामी ने तात्पर्यवृत्ति नामक संस्कृत टीका लिखी , इन दोनों टीकाओं को लेकर परम पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने ज्ञानज्योति नामक हिन्दी टीका को विशेषार्थ, भावार्थ, एवं गुणस्थान सहित लिखकर जैन समाज पर महान उपकार किया और समय- समय पर अपने शिष्यवर्ग को इसका अध्ययन कराकर व्यवहार- निश्चय की उपादेयता बताई | उसी स्वाध्याय का प्रतिफल कुछ गाथाओं का सार इसमें समाहित है |