जिनधर्मामृत
स्वाध्याय को परम तप माना गया है | परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी एक सिद्धहस्त लेखिका हैं | महान गुरु की उन महान शिष्या ने अपनी गुरुमाता से चारों अनुयोगों का ज्ञान प्राप्त कर समय- समय पर अनेक आलेख लिखे जिसका सुन्दर समन्वय जिनधर्मामृत के रूप में आपके समक्ष है | माला में पिरोये एक-एक मोती की तरह अत्यंत सुन्दर और महत्वपूर्ण इस ग्रन्थ में १९ विषयों का समावेश है जिसके माध्यम से चारों अनुयोगों का ज्ञान आधुनिक भाषाशैली में प्राप्त किया जा सकता है | ऐसे महान ग्रन्थ की प्रदात्री पूज्य माताजी को कोटि-कोटि वंदन |