परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की महान अनुकम्पा से आज हमें जिनागम सुलभतया और सरल रूप में प्राप्त हो रहा है | जैनधर्म के २४ वें तीर्थंकर श्री महावीर के शासनकाल में हमारे सौभाग्य से भगवान महावीर की दिव्यध्वनि को सुनकर द्वादशांग की रचना करने वाले श्री गौतम स्वामी की वाणी हमें प्राप्त हो रही है |
चैत्यभक्ति , दैवसिक- रात्रिक प्रतिक्रमण , पाक्षिक प्रतिक्रमण , गणधरवलय मन्त्र , श्रावक प्रतिक्रमण आदि गौतम स्वामी की सभी कृतियों पर श्री प्रभाचंद्राचार्य ने टीकाग्रन्थ की रचना की है |
उन टीकाओं का आश्रय लेकर माताजी ने यह सारभूत कृति हमें प्रदान की है | सन्२०१४ में माताजी ने श्री गौतम गणधर वर्ष मनाकर गौतम स्वामी की कृतियों का संकलन करके १० अध्याय में एक छोटी सी पुस्तक लिखी पुनः उन १० अध्यायों पर अमृतवर्षिणी टीका लिखी जिसके चार भाग हैं प्रस्तुत चतुर्थ भाग में तीन् अध्यायों ८. पडिक्कमामि भंते ९. इच्छामि भंते १०. वीर भक्ति पर अमृतवर्षिणी टीका है इसमें सर्वप्रथम महावीर स्वामी को नमन करके अनेक उच्च कोटि के ग्रंथों के आधार से सार ही भर दिया है ,साथ ही और भी अनेक विषय इसमें समाविष्ट हैं |आज के पंचमकाल में चतुर्थकाल की वाणी को प्राप्त करके श्री गौतम स्वामी के उपकारों को स्मरण करके हमें सम्यक्ज्ञान को वृध्दिन्गत करते रहना चाहिए |
श्री गौतम स्वामी के मुख से निकली चैत्यभक्ति , दैवसिक प्रतिक्रमण , पाक्षिक प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण आदि रचनाएं आज हमें परम्परा से मौखिक ज्ञान से प्राप्त हैं |
इन्हीं रचनाओं में से मैटर लेकर पूज्य माताजी ने श्री गौतम गणधर वाणी पुस्तक को दस अध्यायों में विभक्त करके संकलित किया है | अमृतवर्षिणी टीका के नाम से रचित दस अध्यायों को चार भागों में प्रकाशित किया गया है | सर्वांगीण चारों अनुयोगों का ज्ञान कराने वाली इस टीका के तीसरे भाग में ” गणधर वलय मन्त्र ” एवं सुदं मे आउस्संतो ”[ मुनि धर्म ] ऐसे दो अध्याय हैं |
वास्तव में जिन्होंने साक्षात महावीर स्वामी की वाणी का ज्ञान हमें प्रदान किया उन श्री गौतम स्वामी का जितना गुणानुवाद किया जावे कम है | इस टीका के तीसरे भाग में छठी एवं सातवीं अध्याय है | गणधर वलय मन्त्र में ४८ मन्त्र हैं जिनका प्रतिदिन स्मरण करने से स्मरण शक्ति बदती है , आधि , व्याधि दूर होती है | इस टीका में इसका विस्तार से वर्णन है | सुदं मे आउस्संतो [ मुनिधर्म ] में मुनि – आर्यिका के २८ मूलगुण एवं पच्चीस भावना का वर्णन है | यह ग्रन्थ ”यथा नाम तथा गुण ” से समन्वित है | आज के पंचम काल में चतुर्थ काल की गणधर वाणी को प्राप्त कर वास्तव में हम सभी भव्यात्माओं को गौरव की अनुभूति करना चाहिए |