18. चार प्रकार के देवों के 32 इन्द्र
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) ‘‘अमरमुकुटच्छायोद्गीर्णप्रभापरिचुम्बितौ।।’’ अमृतर्विषणी टीका— अर्थ—देवेंद्रगण जब आपको नमस्कार करते हैं तब आपके चरण कमल उनके मुकुटों की मणियों की कांति से स्पर्शित होते हैं। ३२ इंद्र अपने असंख्य देव—देवी परिवार के साथ आपके चरणों में नमस्कार करते हैं— ४ प्रकार के देवों के ३२ इन्द्र— भवनवासी देवों के १०…