चंदनामति माता जी दीक्षा दिवस वीडियो
।। श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर देवाय नमः ।। तद्भव मोक्षगामी हनुमान की कथा जैनधर्म के बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत भगवान मोक्ष पधारे, उसके बाद उनके शासन में श्री रामचन्द्र, श्री हनुमान वगैरह अनेक महापुरुष मोक्षगामी हुए; उनमें से श्री हनुमान की यह कथा है। मोक्षगामी भगवान हनुमान की माता सती अंजना थी। यह अंजना पूर्वभव में…
रूस में जैन पाण्डुलिपियाँ – ललित जैन ,दुर्ग (छ.ग.) ईसा के पट्ट शिष्य संत थामस जब ईसाई धर्म के प्रचार के सिलसिन में हिन्दुस्तान आये थे तो उन्हें हिन्दुस्तान में व्याप्त मंत्र-तंत्र एवं धर्म व्यवस्था से सिवाधिक प्रभावित किया, उन्होंने भारतीय ब्राह्मण एवं श्रमणों पर ढेर सारी से सकारी तथा पाण्डुलिपियाँ एकत्र कर विशेष अध्ययन…
धार्मिक जीवन और स्वास्थ्य – आचार्य राजकुमार जैन , इटारसी मनुष्य के जीवन में आचरण का विशेष महत्व है। आचरण ही मनुष्यों को सदाचारी, कदाचारी या दुराचारी बनाता है। आचरण की शुद्धता मनुष्य के सात्विक एवं धार्मिक जीवन यापन का आचार है। सझचार विचार ही मनुष्य को धार्मिक जीवन यापन की प्रेरणा देते हैं। कोई…
Social Implications of Meditatioin Jain scriptures describe four types of meditation artfa sorrowful), roudra (eckel), drama (virtuous), and ceukla (pure). The first two are inauspicious (black) meditation and the last two are auspicious (white) meditation Mahavira propounded to pay attention on auspicious meditation which is conducive to the attainment of liberation and inspired to refraination…
अहिंसा सम्बन्धी व्यावहारिक समस्याएँ, समाधान तथा उपलब्धियाँ (जैनदर्शन के परिप्रेख्य में) – डॉ. वंदना मेहता लाडनूं (राजस्थान) ‘अहिंसा’ निषेधात्मक शब्द है। जैनधर्म में इसके समान समता, सर्वभूतदया, संयम जैसे अनेक शब्द अहिंसक आचरण के लिए प्रयुक्त हैं। वास्तव में जहाँ भी राग-द्वेषमयी प्रवृत्ति दिखलायी पड़ेगी, वहीं हिंसा किसी न किसी रूप में उपस्थित हो जायेगी।…
जैन वाङ्मय में अवधिज्ञान – पवन कुमार जैन (शोध छात्र)चांदीहॉल, जोधपुर (राज.) भारतीय दार्शनिकों और पाश्चात्य दार्शनिकों ने अपने ग्रंथों में अतीन्द्रियज्ञान की चर्चा की है। जैनदर्शन में इसके तीन भेद हैं- अवधिज्ञान, पर्ययज्ञान और केवलज्ञान। उनमें से प्रथम अवधिज्ञान सीधा आत्मा मनःप से होने वाला ज्ञान है। इसमें इन्द्रिय एवं मन के सहयोग की…
आचार्य देवसेन की कृतियों में दार्शनिक दृष्टि -डॉ. आलोक दरियागंज, नई दिल्ली-1 आचार्य देवसेन स्वामी ने अपनी कृतियों में विभिन्न प्रकार से प्ररूपित किया है। है, वह सत् कहलाता है, उत्पाद, व्यय सत् के जो अपने गुण पर्यायों में और ध्रौव्य से युक्त सत्का है, वही अस्तित्व कहा जाता है। इसी सत् के पर्याय स्वरूप…
चामुण्डाराय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व डॉ. आनन्द जैन (जैनदर्शनाचार्य वाराणसी) महान् चामुण्डाराय का जन्म ईसा की दशवीं शताब्दी में माता काललदेवी की कुक्षि से ब्रह्मक्षत्रियवंश’ में हुआ था। इनके पिता महाबलिह राज्य के प्रसिद्ध श्रावक थे। चामुण्डाराय ने आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा गुरु अजितसेन’ के सान्निध्य में प्राप्त की थी तथा जैनदर्शन में दक्षता आ. नेमिचन्द के…
जैनदर्शन में वर्णित विग्रहगति की अन्य दर्शनों से तुलना – प्रा. डॉ० शीतल चन्द जैन भारतीय दर्शन में जैनदर्शन का महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है। इसका मुख्य कारण जैन दार्शनिकों का चिंतन युक्तिपूर्ण तो है ही और पूर्वपक्ष को प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करना भी है। ऐसे महान् दार्शनिक चिंतकों में तार्किक चूडामणि आचार्य विद्यानंद…