जैन काव्य कथाएँ (भाग-३)
जैन काव्य कथाएँ
क्या धनवान होने से सुखी कहलाते हैं? आज समाचार पत्र में पढ़ा की विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति धनवान होने के बावजूद सुखी नहीं है और न रहे जबकि सामान्य तौर पर पूरी दुनिया धन को कमाने में पागल हो रही है और है मैं यहाँ यह बताना चाहूंगा की संसार में जितनी भी बाह्य…
स्वयं की प्रशंसा न करें Avoid Self Praise प्रेरक प्रसंग महाभारत में एक प्रसंग है। एक बार अर्जुन युधिष्ठर को क्रोधावेश में भला बुरा कह देते हैं किन्तु थोड़ी देर में वे अत्यंत दुःखी होकर अपनी तलवार निकालकर स्वयं को मारना चाहते हैं यह देख कृष्ण उनसे पूछते हैं। तुम यह कृत्य क्यों करना चाहते…
सत्यघोष की कथा भरत क्षेत्र के सिंहपुर नगर में राजा सिंहसेन राज्य करते थे उनकी रानी का नाम रामदत्ता था, और पुरोहित का नाम श्रीभूमि था वह पुरोहित अपनी जनेऊ में एक कैची बांधे रखता था और लोगों से कहता था कि ‘यदि जिहवा असत्य बोल दे तो मैं उसको काट डालूँ। लोग विश्वास के…
जो बोले सो कुंडी खोले पंजाब प्रांत के एक नगर में एक दो मंजिले मकान में कई किराएदार थे। सर्दियों का समय था। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। हरभजन सिंह अपनी नौकरी से छः महीने बाद घर आया था। रात के करीब डेढ़ बजे थे। घर आकर हरभजन सिंह दरवाजे पर आवाज लगाने लगा।…
जीवन को मनोनुकूल बनाएं संसार में आपका नाना प्रकार के लोगों से पाला पड़ता है। एक कमरे में केवल एक सहयोगी के साथ बैठकर काम करना पड़े तो समस्याओं से निपटना आसान होता है, लेकिन सैकड़ों कर्मचारियों के साथ काम करने की स्थिति में आपको कई विचित्र अनुभव मिलेंगे। यदि आप चाहते हैं कि सभी…
सद् बुद्धि धरती पर जितने भी प्राणी हैं उनको दो रूपों में बांटा जा सकता है। एक वे जिनके लिए विचारपूर्वक कर्म संभव है और दूसरे वे जिनके लिए विचारहीन भोग का ही महत्व है। मनुष्य प्रथम प्रकार की श्रेणी में आता है। वहीं मनुष्य से इतर प्राणी दूसरी श्रेणी के अंतर्गत रखे जा सकते…