भक्तिमार्ग का प्रचार – प्रसार आज से नहीं , आचार्य कुन्दकुन्द के समय से था | वीतराग मार्ग का अनुसरण करते हुए स्वयं आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने भक्ति पाठों की रचना की | ये भक्तियाँ प्राकृत भाषा में रचित हैं | पूज्य आर्यिका श्री रत्नमती माताजी के विशेष आग्रह से पूज्य माताजी ने इनका हिन्दी पद्यानुवाद सन् १९७२ में कर दिया था , किन्तु उनका प्रकाशन सन् १९८५ में हो पाया |
इस पुस्तक में आचार्य पूज्यपाद कृत संस्कृत भक्तियाँ का तथा गौतम गणधर रचित दो भक्तियों का हिन्दी पद्यानुवाद भी दिया गया है |