8.7 चौबीस तीर्थंकर समवसरण स्तोत्र
चौबीस तीर्थंकर समवसरण स्तोत्र —गणिनी ज्ञानमती —नरेन्द्र छंद— कर्मभूमि के आर्यखंड में, तीर्थंकर विहरे हैं। समवसरण के मध्य राजतें, भविजन पाप हरे हैं।। देश विदेहों में तीर्थंकर, समवसरण नित रहता। भरतैरावत में चौथे ही, काल में यह दिख सकता।।१।। —दोहा— जिनवर समवसरण यही, धर्म सभा की भूमि। मन वच तन से मैं नमूं , मिले…