12.4 व्यवहारनय परमार्थ का प्रतिपादक है
व्यवहारनय परमार्थ का प्रतिपादक है समयसार में आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी कहते हैं— जो हि सुए णहि गच्छइ, अप्पाणमिणं तु केवलं सुध्दं। तं सुयकेवलिमिसिणो, भणंति लोयप्पईवयरा।।९।। जो सुयणाणं सव्वं, जाणइ सुयकेविंल तमाहु जिणा। णाणं अप्पा सव्वं, जम्हा सुयकेवली तम्हा।।१०।। अर्थ—जो जीव निश्चय से श्रुतज्ञान के द्वारा इस केवल शुद्ध आत्मा को जानते हैं, लोक को…