श्री मृत्युंजय विधान
01. महाव्याधि विनाशक श्री मृत्युंजय विधान 02. महामृत्युंजय स्तोत्र
महामृत्युंजय स्तोत्र -प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती तीन लोक का हर प्राणी जिनके चरणों में झुकता है। तीन लोक का अग्रभाग जिनकी पावनता कहता है।। जन्म मृत्यु से रहित नाथ वे मृत्युञ्जयि कहलाते हैं। मृत्युञ्जयि प्रभु के वन्दन से जन्म मृत्यु नश जाते हैं।।१।। जिसने जन्म लिया है जग में मृत्यू उसकी निश्चित है। इसी जन्ममृत्यू के…
महाव्याधि विनाशक श्री मृत्युंजय विधान तर्ज-जन्म मानव का पाया है जो….. यह तो जिनवर का दरबार है, यहाँ भक्ति तो करना पड़ेगा। मन में यदि भक्ति की शक्ति है, तन से व्याधि को भगना पड़ेगा।।टेक.।। आज कलियुग का अभिशाप है, …
श्री ऋषभदेव विधान 01. श्री ऋषभदेव स्तुति 02. श्री ऋषभदेव पूजा 03. गणधर पूजा 04. सर्वसाधु पूजा 05. आर्यिका पूजा 06. सहस्रनाम मंत्र पूजा 07. पूजा-06 08. पूजा-07 09. पूजा-08 10. पूजा-09 11. पूजा-10 12. पूजा-11 13. पूजा-12 14. पूजा-13 15. पूजा-14 16. श्री ऋषभदेव सिद्ध भगवान पूजा 17. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -दोहा- तीनलोक की सम्पदा, करें हस्तगत भव्य। तुम जयमाला कंठधर, पूरें सब कर्तव्य।।१।। चाल-हे दीनबंधु…. जैवंत मुक्तिकन्त देवदेव हमारे। जैवंत भक्त जन्तु भवोदधि से उबारे।। हे नाथ! आप जन्म के छह मास ही पहले। धनराज रत्नवृष्टि करें मातु के महले।।१।। माता की सेव करतीं श्री आदि देवियाँ। अद्भुत…
पूजा नं.-15 श्री ऋषभदेव सिद्ध भगवान पूजा अथ स्थापना (तर्ज—ऐ माँ तेरी सूरत….) शिवतरु की जड़ सम्यग्दर्शन, इस बिना मोक्षफल क्या होगा। भगवान्! तुम्हारी भक्ती से, बढ़ करके मोक्षपथ क्या होगा।।टेक.।। भक्ती ही तो समकित, निश्चय व्यवहार द्विविध। स्वात्मा की श्रद्धा ही, निश्चय सम्यक्त्व सहित।। तीर्थंकर प्रभु की श्रद्धा बिन, निश्चय समकित भी क्या होगा।भग.।।१।।…
पूजा नं.-14 पाँच भरत पण ऐरावत में चौथा काल जभी हो। चौबीस चौबिस तीर्थंकर प्रभु जन्म धरें सुकृती हो।। इक सौ साठ विदेह क्षेत्र में सतत तीर्थंकर होते। इन सबका आह्वानन कर हम, भव भव कल्मष धोते।।१।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य दिग्वाससादि-अष्टोत्तरशतनाममंत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य दिग्वाससादि-अष्टोत्तरशतनाममंत्रसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:…
पूजा नं.-13 जो भव्य मुनिगण वंद्य ऋषभेश्वर चरण को वंदते। वे निज अनंतानंत जन्मों के अघों को खंडते।। इस हेतु से हम भक्ति श्रद्धा भाव से प्रभु को जजें। आह्वान विधि से पूज कर निज आत्म समरस को चखें।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य त्रिकालदर्श्यादिशतनाममंत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य त्रिकालदर्श्यादिशतनाममंत्रसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
पूजा नं.-12 त्रिभुवन के ज्ञाता मोक्षमार्ग के नेता तीर्थंकर होते। ये कर्मभूमिभृत् के भेत्ता, सब राग द्वेष विरहित होते।। सर्वज्ञ वीतरागी हित के उपदेशी प्रभु त्रिभुवन गुरू हैं। आह्वानन कर मैं नित पूजूँ, ये सर्व हितंकर जिनवर हैं।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य बृहद्वृहस्पत्यादिशतनाममंत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य बृहद्वृहस्पत्यादिशतनाममंत्रसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…
पूजा नं.-11 जो गणधरों से वंद्य हैं बारह सभा के नाथ हैं। निज भक्त को संसार में करते सदैव सनाथ हैं।। उन तीर्थंकर जिनदेव को मैं आज पूजूँ भाव से। निज आत्म निधि की प्राप्ति हो अतएव थापूँ चाव से।।१।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य असंस्कृतसुसंस्कारादिशतनाममंत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य असंस्कृतसुसंस्कारादिशतनाममंत्रसमूह! अत्र तिष्ठ…