11. गणधर वलय स्तुति
गणधर वलय स्तुति अन्त्य जयमाला —पद्यानुवाद-दोहा— जिनवर गणधर साधुगण, ऋद्धि सिद्धि के नाथ। सर्वविघ्नहर्ता इन्हें, नमूँ नमाकर माथ।।१।। —चौबोल छंद— जीता अंत: शत्रूगण को, ‘‘जिन’’ कहलाए गरिष्ठ भी। देशावधि परमावधि सर्वावधि संयुत मुनिराज सभी।। कोष्ठ बीज आदिक ऋद्धीयुत, पदानुसारी ऋद्धीयुत। सब गणधर की स्तुति करूँ मैं, उन गुणप्राप्ति हेतु संतत।।२।। जो संभिन्नश्रोतृ ऋद्धीयुत, स्वयंबुद्ध मुनिनाथ…