18. अथ मंडप प्रतिष्ठा विधान
अथ मंडप प्रतिष्ठा विधान चाल—शेर— ॐ मणिमयी स्तंभ से उँचा महामंडप। दसविध ध्वजाओं से महारमणीय है मंडप।। तोरण चंदोवा चंवर छत्र पुष्पहार से। अतिशोभता मंगल कलश व धूप घटों से।।१।। मंडपांत: पुष्पांजलिं क्षिपेत्। (मंडप के अन्दर…
अथ मंडप प्रतिष्ठा विधान चाल—शेर— ॐ मणिमयी स्तंभ से उँचा महामंडप। दसविध ध्वजाओं से महारमणीय है मंडप।। तोरण चंदोवा चंवर छत्र पुष्पहार से। अतिशोभता मंगल कलश व धूप घटों से।।१।। मंडपांत: पुष्पांजलिं क्षिपेत्। (मंडप के अन्दर…
अथ भूमिशोधन (मंडप शुद्धि)—दोहा— घंटां ताल मृदंग ध्वनि, दुंदुभि वाद्य बजंत। जय जय मंगल ध्वनि करूँ, पुष्पांजलि विकिरंत।।१।। ॐ घंटादिवाद्यं उद्घोषयामि स्वाहा। (बाजों पर पुष्पांजलि क्षेपण कर घंटा, मंजीरा, ढोलक आदि बाजे बजाकर जय जय ध्वनि करें।) ॐ ह्रीं परमब्रह्मणे नमो नम:। स्वस्ति स्वस्ति जीव जीव नंद नंद वर्धस्व-वर्धस्व विजयस्व विजयस्व अनुशाधि अनुशाधि पुनीहि पुनीहि…
यज्ञ दीक्षा विधान —बसंततिलका छंद— अर्हंत सन्मुख धरी सब वस्तुयें हैं। मंत्रित किया वर अनादि सुमंत्र से मैं।। श्रीमान् गुरुवर निकट यह यज्ञ दीक्षा। लेकर जिनेंद्रवर पूजन को करूँ मैं।।१।। (चंदन, माला, मुकुट आदि प्रसाधन वस्तुयें एक पात्र…
सर्वसाधु पूजा स्थापना—गीताछंद जो नित्य मुक्तीमार्ग रत्नत्रय स्वयं साधें सही। वे साधु संसाराब्धि तर पाते स्वयं ही शिव मही।। वहं पे सदा स्वात्मैक परमानंद सुख को भोगते। उनकी करे हम अर्चना, वे भक्त मन मल धोवते।।१।। ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
सिद्ध पूजा स्थापना—गीताछंद श्री सिद्ध परमेष्ठी अनंतानंत त्रैकालिक कहे। त्रिभुवन शिखर पर राजते वह सासते स्थिर रहे।। वे कर्म आठों नाश कर, गुण आठधर कृतकृत्य हैं। कर थापना मैं पूजहूँ, उनको नमें नित भव्य हैं।।१।। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।…
अथ महामंडलाराधना जिनानामपि सिद्धानां महर्षीणां समर्चनात्। पाठात्स्वस्त्ययनस्यापि मन:पूर्वं प्रसादये।।१।। मन: प्रसत्तिसूचनार्थं अर्चनापीठाग्रत: पुष्पांजलिं क्षिपेत्। अर्हन्त पूजा स्थापना—गीता छंद अरिहंत प्रभु ने घातिया को घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह दोष का सब क्षय किया।। शत इंद्र नित पूजें उन्हें गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना के हेतु अभिनन्दन…
घटयात्रा विधि समस्त उद्यापन विधानों के लिये जलयात्रा (घटयात्रा) का विधान यह है कि सौभाग्यवती स्त्रियाँ तूल में लिपटे और कलावा से सुसंस्कृत नारियलों से ढके कलश जलाशय के पास ले जावें। जलाशय के पूर्वभाग या उत्तर भाग में भूमि को जल से धोकर पवित्र करें। पश्चात् उस भूमि में चावलों से चौक बनाकर चावलों…
अंकुरारोपण विधि —शेर छंद— त्रिभुवन के एकचंद्र श्री जिनेन्द्र को नमूँ। रवि चंद्र कोटि से अधिक दीप्ती उन्हें नमूँ।। पुण्यांकुरों सम अंकुरारोपण विधी करूँ। पुण्यांकुरों से नाथ की अर्चाविधी करूँ।।१।। (चैत्यालय के पूर्व या उत्तर दिशा में कमलाकार मंडल बनाकर स्वस्तिक पर दस, बारह या आठ पालिका, घटी, शराव, पटली को रखें। इन मंडलों के…
ध्वजारोहण विधि चाल शेर— श्रीमज्जिनेन्द्र का ये जगत् ईशिता का ध्वज। मकरध्वजादि शत्रु जीत का ये विजयध्वज।। जिन धर्म का प्रतीक ये उत्तुंग महाध्वज। विधिवत् यहाँ चढ़ाऊँ आज ये है जैन ध्वज।।१।। ॐ ह्रीं श्रीं क्षीं भू: स्वाहा। विधियज्ञप्रतिज्ञापनाय पुष्पांजलि:। जिनधाम के सन्मुख ध्वजा के यक्ष को यहाँ। पुष्पांजलि कर मंत्र से बुलाऊँ मैं यहाँ।।…
पूजा अन्त्य विधि (अनंतर मणि, मूंगा, चाँदी आदि की माला से या अंगुली से अथवा १०८ पुष्पों से नीचे लिखे मंत्र का जाप्य करें। समयाभाव में ९ बार मंत्र पढ़कर पुष्प चढ़ावें।) ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्रौं ह्र: असि आ उसा स्वाहा। पुन: चैत्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शांतिभक्ति पढ़ें— अथ जिनेन्द्रमहापूजास्तवसमेतं श्रीचैत्यभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। णमो अरहंताणं णमो…