अथ भावनेन्द्रादि पूजा
अथ भावनेन्द्रादि पूजा गीता छंद भावन अधिप आदिक कहें, जो इन्द्रगण वे सब यहाँ। आवें विराजें विघ्न नाशें, धर्मवत्सल से यहाँ।। जो मुनि श्रुतावधि आदि ऋद्धि, से सहित उनको यहाँ। मैं भक्ति से आह्वान कर, स्थापना भी कर रहा।।१।। ॐ ह्रीं भावनेशादिश्रुतावध्यादियोगिनः अत्र अवतरत अवतरत, आह्वाननं। ॐ ह्रीं भावनेशादिश्रुतावध्यादियोगिनः अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनं।…