05 . श्री उपाधयाय पूजा
(पूजा नं: 5 ) श्री उपाधयाय पूजा -स्थापना-गीता छंद- जो अंग ग्यारह पूर्व चौदह, धारते निज बुद्धि में। पढ़ते पढ़ाते या उन्हें, जो शास्त्र हैं तत्काल में।। वे गुरू पाठक मोक्षपथ, दर्शक उन्हीं की वंदना। आह्नान विधि करके यहाँ पर, मैं करूँ नित अर्चना।।1।। ॐ ह्री णमो उवज्झायाणं श्री उपाध्यायपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। …